कबीर के दोहे हिंदी में with mp3 and lyrics
भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में जन्मे कबीर दास १५वीं सदी के संत और कवि थे। मानवता में उनका भरपूर विश्वास था और इसे सच्चे तरीके से जीने को ही वो अपना धर्म मानते थे। कबीर दास सामाजिक कुप्रथाओं और बुराइयों का विरोध करते थे।
आइये देखते हैं कबीर के दोहे - गुरु गोविंद दोऊ खड़े - along with lyrics and mp3.
Also listen Rahim ke dohe - रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय.
कबीर के दोहे - गुरु गोविंद दोऊ खड़े
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गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाए - २
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय कबीरा।
गोविन्द दियो बताय।
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोये - २
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय कबीरा।
आपहुं शीतल होय।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर - २
पंथी को छाया नहीं , फल लागे अति दूर भैया।
फल लागे अति दूर।
निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाए - २
बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुहाए कबीरा।
निर्मल करे सुहाए।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई - २
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होए कबीरा।
तो दुःख काहे होए।
माटी कहे कुम्हार से , तू क्यूँ रोन्धे मोहे - २
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंधुंगी तोहे रे भैया।
मैं रोंधुंगी तोहे।
मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तेरा -२
तेरा तुझको सौंप दे क्या लागे है मेरा कबीरा।
क्या लागे है मेरा।
काल करे सो आज कर आज करे सो अब -२
पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब कबीरा।
बहुरि करेगा कब।
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान -२
मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान रे भाई।
पड़ी रहन दो म्यान।
नहाए धोए क्या हुआ जो मन मैल न जाए -२
मीन सदा जल में रहे धोए बास न जाए रे भैया।
धोए बास न जाए।
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय -२
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय कबीरा।
पढ़े सो पंडित होय।
साईं इतना दीजिये जा में कुटुंब समाय -२
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय कबीरा।
साधु न भूखा जाय।
माखी गुड़ में गड़ी रहे पंख रहे लिपटाय -२
हाथ मले और सिर धुने लालच बुरी बला ए कबीरा।
लालच बुरी बला।
Also, listen रहीम के दोहे.
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