"चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्" निर्वाण षट्कम lyrics and mp3 with meaning in हिंदी
कई हजारों सालों पहले आदि शंकराचार्य द्वारा रचित निर्वाण षट्कम आध्यात्मिक खोज का प्रतीक है और यह संस्कृत के मंत्रों में सबसे प्रसिद्ध है। सुन्दर लयबद्ध यह गीत मैंने पहली बार ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि के कार्यक्रम में सुना और तभी से ये मेरा पसंदीदा मंत्रोच्चारण है।
Also, listen उतरें मुझमे आदियोगी by कैलाश खेर.
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निर्वाण षट्कम "चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्" lyrics in हिंदी
मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं,
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥२॥
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥३॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥४॥
न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥५॥
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो,
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥६॥
निर्वाण षट्कम meaning in हिंदी
न मैं मन हूँ, न बुद्धि, न अहंकार और ना ही स्मृति,
न मैं कान हूँ, न त्वचा, न नाक और ना ही आंखें।
न मैं अंतरिक्ष हूँ, न पृथ्वी, न अग्नि, न जल और ना ही पवन,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं अनन्त शिव हूँ॥१॥
न मैं सांस हूँ और न ही पंचवायु (पंचवायु शरीर और उसके अंगों को कार्य करने में सक्षम बनाता है),
न तो मैं शरीर के सात अवयव हूँ, न ही पाँच आवरण।
न मैं वाणी हूँ, न हाथ और न ही पैर,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं अनन्त शिव हूँ॥२॥
न मुझे घृणा है, न आसक्ति, न लोभ और न ही मोह,
न ही मुझमें गर्व और ईर्ष्या की भावना है।
मैं धर्म, अर्थ, काम और मुक्ति इन सबसे परे हूँ,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं अनन्त शिव हूँ॥३॥
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुःख इन सबसे परे हूँ,
मैं मंत्र, तीर्थ, वेद और यज्ञ इन सबसे भी परे हूँ।
न तो मैं कोई अनुभवी हूँ और न ही कोई अनुभव,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं अनन्त शिव हूँ॥४॥
न तो मुझे मृत्यु का भय है और न ही जातिभेद का,
न तो मेरे माता पिता हैं और न ही मेरा जन्म हुआ है।
न मेरे संबंधी हैं, न कोई मित्र और न ही कोई गुरु या शिष्य,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं अनन्त शिव हूँ॥५॥
मेरा कोई विकल्प नहीं है और मेरा कोई रूप भी नहीं है,
मैं सब में अंतर्निहित हूँ और सभी इन्द्रियों में।
न मुझे किसी से लगाव है और न ही उससे मुक्त हूँ,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं अनन्त शिव हूँ॥६॥
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